Bihar में रविवार की जगह शुक्रवार को बंद रहते हैं 138 स्कूल, शिक्षा विभाग के पास नहीं है कोई रिकॉर्ड..

डेस्क : सीमांचल के स्कूल में साप्ताहिक प्रतिबंध को लेकर मदरसा मॉड्यूल पर चर्चा अब जोर पकड़ रही है. कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया में कई ऐसे स्कूल हैं जो बिहार सरकार द्वारा चलाए जाने के बावजूद मदरसों की तर्ज पर शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में बंद रहते हैं और इसकी जगह रविवार को स्कूल खुला रहता है.

कटिहार से शुक्रवार की छुट्टी को लेकर एक चौंकाने वाली बात सामने आई है. दरअसल कटिहार में 138 सरकारी स्कूल शुक्रवार को बंद रहते हैं और रविवार को संचालित होते हैं। लेकिन, स्कूल के साप्ताहिक प्रतिबंध के बारे में न तो स्कूल के पास कोई रिकॉर्ड है और न ही शिक्षा विभाग के पास स्कूल के इस साप्ताहिक प्रतिबंध के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी है.

यहां 1976 से चली आ रही परंपरा : दरअसल चर्चा यह है कि 1976 से पहले यह सभी स्कूल समितियों द्वारा चलाया जाता था और 1976 में उस समय के आधार पर स्कूलों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद भी यह परंपरा जारी रही। बड़ी बात यह है कि 2009 में शिक्षा का अधिकार लागू होने के बावजूद साप्ताहिक प्रतिबंध को लेकर कोई ठोस दिशा-निर्देश नहीं होने के कारण इन स्कूलों में शुक्रवार का मॉड्यूल जारी रहा.

95% छात्र अल्पसंख्यक समुदाय के हैं : कोढा प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय धूमगढ़ के प्रभारी प्रधानाध्यापक मोहम्मद युसूफ का कहना है कि उनके स्कूल में 95 फीसदी छात्र अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. इसलिए उनकी सुविधा को देखते हुए पूर्व से चली आ रही इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए विद्यालय का साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार को कर दिया गया है और इसके स्थान पर रविवार को विद्यालय का संचालन होता है.

स्कूलों के पास नहीं है सरकारी आदेश पत्र : स्कूल की शिक्षा समिति से जुड़े आफताब आलम का भी कहना है कि आज यह कोई नया नियम नहीं है. इस अल्पसंख्यक बहुल इलाके में कई स्कूल सालों से ऐसे ही चल रहे हैं। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी कामेश्वर गुप्ता का कहना है कि उनके संज्ञान में यह बात भी आई है कि जिले के 100 से अधिक स्कूल साप्ताहिक प्रतिबंध के रूप में शुक्रवार को बंद रहते हैं और मुआवजे के रूप में रविवार को खुले रहते हैं. विभाग के पास इस संबंध में निर्णय संबंधी कोई स्पष्ट पत्र नहीं है। इसके अलावा शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश का पालन किया जाएगा। आपको बता दें कि इस फैसले के बारे में एक तरफ जहां हिंदी स्कूलों के साप्ताहिक अवकाश को लेकर अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के स्कूलों पर मनमाने नियम थोपने का आरोप है. वहीं कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब सालों से यह परंपरा चली आ रही है तो अचानक इस पर इतना पश्चाताप क्यों हो रहा है…?

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