बिहार और जातीय नरसंहार : जानें कब कब जातीयता की वजह से खून में नहाई है बिहार की धरती…
डेस्क : मधुबनी के महमदपुर गाँव मे होली के दिन 5 लोगों की हत्या कर दी गई। पीड़ित परिवार के लोग राजपूत जाती से आते थे , जबकि मुख्य आरोपियों में ब्राह्मण जाति के लोग शामिल थे। इस हत्याकांड के बाद बिहार की राजनीति एक बार फिर से गरमा गई और कई लोग इस हत्याकांड को जातीय नरसंहार बताने में जुट गए। हालांकि आरोपियों में 18 ब्राह्मण , 13 राजपूत और 1 पासी समुदाय का आदमी शामिल है ,लेकिन फिर भी कई लोग इसे जातीय रंजिश का रूप देने में लगे हैं।
अब ये तो जाँच का मसला है कि इस हत्याकांड के पीछे असली वजह क्या थी। लेकिन , आज हम आपको बताने जा रहे है बिहार के प्रमुख जातीय नरसंहारों के बारे में। यह नरसंहार बिहार के उस दौर की कहानी है , जब बिहार में जाति के नाम पर हजारों निर्दोषों की बलि चढ़ा दी गई। 2000 से पहले तकरीबन 25 सालों तक बिहार में जातीय नरसंहार का ऐसा खूनी खेल खेला गया कि पीड़ित परिवार आज भी उन लम्हों को याद करके सिहर जाते हैं। उस दौरान कई जाती के लोग अपना घर छोड़ के बाहर रहने लगे ताकि उनकी जान बच सके।
बिहार के प्रमुख जातीय नरसंहार-
बेल्ची नरसंहार- इमरजेंसी खत्म होने के तुरंत बाद साल 1977 में हुए इस नरसंहार ने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया था। इस हत्याकांड में 14 दलितों को हत्या कर दी गई थी , और इसका आरोप कुर्मी समुदाय पर लगा था। इमरजेंसी के बाद चुनाव हार चुकी इंदिरा गांधी ने इस हत्याकांड के बाद बाढ़ से घिरे बेल्ची गाँव का हाथी पर चढ़कर दौर किया था। इस नरसंहार को बिहार का पहला जातीय नरसंहार भी कहा जाता है।
देललचक- भगौरा नरसंहार- इस नरसंहार को उस वक्त तक का सबसे बड़ा जातीय नरसंहार माना जाता है। साल 1987 में औरंगाबाद जिले के देललचक – भगौरा गाँव मे पिछड़ी जाति के दबंगो ने कमजोर तबके के 52 लोगों की हत्या कर दी।
बारा नरसंहार- इस नरसंहार को बिहार के क्रूरतम नरसंहारों में से एक कहा जाता है। 12 फरवरी 1992 को माओवादियों ने गया जिले के बारा गाँव मे भूमिहार जाती के 35 लोगों का गला रेत कर हत्या कर दिया था।
बथानी टोला नरसंहार- इस नरसंहार को बारा नरसंहार के प्रतिशोध के रूप में देखा जाता है। 1996 में भोजपुर जिले के बथानी टोला गाँव मे अगड़ी जाती के लोगों ने दलित , पिछड़ी जाति और मुस्लिम समुदाय के 22 लोगों का हत्या कर दिया।
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार- इस नरसंहार को बिहार का सबसे बड़ा जातीय नरसंहार कहा जाता है। 1 दिसंबर 1997 को जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गाँव मे रणवीर सेना ने 61 दलितों की हत्या कर दी। मृतकों में महिलाओं और बच्चे भी शामिल थे। इस क्रुरतम हत्याकांड को बिहार का सबसे जघन्यतम हत्याकांड कहा जाता है।
सेनारी हत्याकांड- साल 1999 में जहानाबाद के सेनारी गाँव मे इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार में अगड़ी जाती के 35 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
मियांपुर नरसंहार- 16 जून 2000 को औरंगाबाद जिले के मियांपुर गाँव मे दलित समुदाय के 35 लोगों को हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड का आरोप अगड़ी जाती के लोगों पर लगा। मियांपुर नरसंहार के बाद बिहार में जातीय नरसंहारों का दौर थम गया। इस नरसंहार को बिहार के आखिर जातीय नरसंहार के रूप में भी देखा जाता है।
इन नरसंहारों के अलावा भी बिहार में कई नरसंहार हुए। बिहार में हुए नरसंहारों का एक पक्ष यह भी रहा है कि सामूहिक रूप से हत्याकांड को अंजाम देने औऱ सबूतों के अभाव की वजह से अधिकतर मामलों में इन नरसंहारों के आरोपी छूट गए हैं।