बिहार में अब मोबाइल सिम की तरह बदल सकेगें अपनी बिजली कंपनी, जानें – कैसा होगा ?

डेस्क : विद्युत अधिनियम वर्ष 2003 में संशोधन के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को लेकर सूबे की बिजली कंपनियों में काम करने वाले बिजलीकर्मी भी पसोपेश में हैं. इस बिल को लाने का सरकार का मकसद बिजली आपूर्ति (डिस्ट्रीब्यूशन) और वितरण (ट्रांसमिशन) के नेटवर्क के कारोबार को अलग- अलग कर बिजली कंपनियों की मोनोपोली को खत्म करना और बाजार में प्रतियोगिता को बढ़ाना है. लेकिन, बिजलीकर्मी आशंकित हैं कि बिजली कंपनियों का निजीकरण होने से उनकी नौकरी पर भी संकट आ जायेगा.

मीटर वही होगा, पर बिजली देने वाली कंपनियां बढ़ेंगी : कुछ अधिकारियों के मुताबिक नया अधिनियम लागू होने पर घरों में लगा मीटर तो वही रहेगा, पर बिजली देने के लिए मैदान में कई निजी कंपनियां भी उपलब्ध रहेंगी. मोबाइल नेटवर्क की ही तरह उपभोक्ता मनचाही कंपनी की बिजली को पोर्ट कर सकेंगे. निजी कंपनियां सरकारी ट्रांसमिशन और जेनरेशन कंपनी के इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करेंगी और बदले में सरकारी कंपनियों का तार इस्तेमाल करने के बदले उन्हें ‘ व्हीलिंग चार्जेज ‘ भी देंगी.

संसदीय समिति के पास मामला हैं लंबित : संसद में पेश करने के बाद भी इसे बिल बिजली मामलों की संसदीय समिति को स्क्रूटनी के लिए भेजा गया है. इस संसदीय समिति के चेयरमैन बिहार के मुंगेर से सांसद और JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह हैं. हालांकि 15 सदस्यीय समिति में भाजपा सांसदों की अधिकता होने से कारण इसके जल्द पास होने सिर्फ की उम्मीद लगायी जा रही है.

अब क्या बदलेगा ? उपभोक्ताओं के लिए : मोबाइल नेटवर्क कंपनियों की तरह ही अपने क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करने वाली एक से अधिक कंपनियों के बीच में से चुनाव करने का विकल्प भी उपलब्ध होगा. संगठन को यह आशंका है कि निजी कंपनियां लागत और मुनाफा तय करते हुए इसकी दर तय करेंगी, जिससे कि बिजली दर बढ़ने की भी आशंका है. हालांकि सरकारी पक्ष इससे लगातार इन्कार कर रहा है.

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