बिहार में अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए DGP ने अपनाई 9 साल पुरानी निति, अपराध में दोबारा लिप्त पाए जाने पर जमानत रद्द

डेस्क : एक समय पर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए बिहार पुलिस एक नीति अपनाती थी। इस नीति के तहत वह सभी अपराधियों की जमानत को रद्द कर देती थी ऐसे में इस नीति में काफी ज्यादा रुकावट पैदा हो गई है और बीते 9 वर्षों में यह नीति अस्त व्यस्त हो गई थी लेकिन अब बिहार पुलिस प्रशासन दोबारा से इस नीति को अपनाने जा रहा है जिसके चलते वह बड़े से बड़े अपराधियों की जमानत में कटौती करता दिखेगा।

बिहार के मौजूदा डीजीपी एस के सिंघल ने बिहार के हर जिले में मौजूद पुलिस थानों एवं इंचार्ज और एसपी को आगाह किया है कि वह फिर से पुरानी नीति अपनाने जा रहे हैं जिस पर कुछ अहम बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। ऐसे में उनका स्पीडी ट्रायल त्वरित अनुसंधान और गिरफ्तारी पर खास ध्यान रखना होगा जिसमें बेल कैंसिलेशन का कार्य निहित है। इस निति को जोर-शोर से चलाया जाएगा और अपराधिक घटनाओं पर लगाम देने के लिए यह तकनीक बेहतर है।

अगर कोई अपराधी इस वक्त बेल पर है और उसको सजा पूरी करने पर बेल मिली थी लेकिन दोबारा से ऐसे साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिनके दम पर वह अपराध करना फिर से शुरू कर चुका है तो उसको हिरासत में लिया जाएगा और अहम बिंदुओं पर पूछताछ की जाएगी और दोबारा से फिर उसको जमानत लेना आसान नहीं होगा। ऐसे में इस नीति की शुरुआत आईजी बीएमपी एमआर नायक नोडल पदाधिकारी द्वारा की जाएगी। इस जमानत को रद्द करवाने के लिए 20 सहायक लोक अभियोजक को अधिकृत किया गया है जो आई जी के साथ सीधा बातचीत करेंगे और मामलों को सुलझाएंगे। इस नीति की शुरुआत 2012 में की गई थी जिसमें डीजीपी अभयानंद ने एक टीम तैयार की थी और उस समय सभी अपराधियों की सूची मांगी गई थी जो बार-बार अपराध करते पकड़े गए थे।

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