बिहार कि राजनीति पर पकड़ के लिए लव और कुश को एक दूसरे के साथ की जरूरत, रालोसपा के जदयू में विलय के मायने

बिहार कि राजनीति में आज का दिन बड़ा दिलचस्प रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा का विलय आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में हो गया। हालांकि इससे पहले भी रालोसपा सुप्रीमो जदयू से ही अलग हुए थे। मतलब उपेंद्र कुशवाहा की घर वापसी हुई है।

लव-कुश समीकरण का इतिहास- 90 के दशक के बाद जब नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। उस वक्त लालू प्रसाद यादव, यादव और मुसलमान के वोट बैंक के सहारे सत्ता पर बैठे हुए थे। सवर्ण और बनिया बीजेपी के तरफ थी। उस वक्त नीतीश कुमार लव और कुश जिसे बिहार में कुर्मी और कुशवाहा जाति कहा जाता है। उसके चुनावी बल पर चुनावी मैदान में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार थें। बाद मे उपेंद्र कुशवाहा, जो बिहार में कुशवाहा जाति के सबसे बड़े नेता हैं नीतीश कुमार से अलग हो गए थे। इस वजह से आने वाली विधानसभा चुनाव में लव-कुश वोट बंटने से दोनों पार्टियों को खामियाजा भुगतना पड़ा।

दोनों को थी एक दूसरे की जरूरत- इस विधानसभा चुनाव में जहां उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का खाता भी नहीं खुला। वहीं जदयू ने अपने कोटे की सीटों में से मात्र 43 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में सीएम नीतीश की पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले अच्छा नहीं रहा और पार्टी आधी सीट पर भी जीत नहीं सकी। वहीं उसकी सहयोगी पार्टी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। इसलिए दोनों के साथ आने से एक बार फिर बिहार की सियासत में दोनों को फायदा हो सकता है।

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