बिहार का ऐसा मंदिर जहाँ नवरात्र में महिलाओं का मंदिर और गर्भगृह प्रवेश है वर्जित

विजयादशमी से पूर्व नवरात्रि में जहां देवी माता की पूजा अर्चना पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ की जाती है। वहीं बिहार में एक ऐसा देवी मंदिर है जहां नवरात्रि के दिनों में लगातार नौ दिनों तक महिलाओं का मंदिर प्रवेश निषेध रहता है। महिलाएं सिर्फ मंदिर की सीढ़ी तक ही पूजा कर सकती है ।यहाँ शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्रि दोनों में ही मंदिर के अंदर सिर्फ पुरुष ही जा सकते हैं महिलाएं नहीं।

आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया गया था यह मंदिर मां आशापुरी मंदिर नाम से प्रसिद्ध है जो कि नालंदा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था जो कि मध्य प्रदेश के राजा यशोवर्मन ने करवाया था। लेकिन मंदिर निर्माण की तिथि को लेकर साक्ष्य प्राप्त नहीं है। यह सिर्फ कहने की बातें हैं जो कि आसपास के लोग कहते रहते हैं। सिर्फ इसके संबंध में यह प्रमाण है कि नौवीं शताब्दी में मगध साम्राज्य देव पाल मां के दर्शन के लिए आए थे। यहाँ गर्भगृह में पाल कालीन मां आशापुरी की अष्टभुजी प्रतिमा है। यहां सबसे पहले राजा घोष ने पूजा की थी तभी से गांव का नाम घोस रावा हो गया।

तंत्र पूजा की वजह से महिलाओं का मंदिर प्रवेश वर्जित है यहाँ नवरात्रि के दिनों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा ढाई हजार वर्ष से चल रही है।आज तक इसका निर्वहन भी किया जा रहा है। हालांकि ऐसा क्यों होता है, इसका कोई वजह नहीं है। यहाँ के पुरोहितों का कहना है कि मंदिर में नवरात्रि के मौके पर तांत्रिक विधि से मां की पूजा की जाती है। इसलिए महिलाओं का प्रवेश पर मंदिर परिसर में तथा गर्भगृह में वर्जित रहता है। हालांकि गर्भगृह में पुरुष प्रवेश वर्जित रहता है । यहाँ नवरात्रि में तांत्रिक सिद्धियां भी की जाती है।

इस मंदिर में मांगी हर मनोकामना पूरी होती है नालंदा स्थित इस देवी मंदिर को आसास्थान के नाम से भी जाना जाता है ।यहाँ बौद्ध धर्म के अनुयाई भी आकर पढ़ाई करते हैं और देवी दरबार में पूजा अर्चना किया करते थे। संतान प्राप्ति की कामना लेकर आज भी यहां लोग आते हैं और मनोकामना पूर्ति होने के बाद यह बकरे की बलि देने की प्रथा है।समानताया प्रसाद के तौर पर नारियल और बताशा चढ़ाए जाने की परंपरा है। मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।

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