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बिहारी रिपोर्टर

बिहार की राजनीति में इस वक्त कहाँ खड़े हैं चिराग पासवान , क्या रामविलास पासवान के निधन के बाद प्रभावहीन हो गई है लोजपा?

डेस्क : बिहार की राजनीति में इस वक्त सिर्फ तीन ही दलों के नेता दिख रहे हैं। सत्ता पक्ष से भाजपा-जदयू और विपक्ष में राष्ट्रीय जनता दल सक्रिय भूमिका निभा रहा है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि चिराग पासवान इस वक्त क्या कर रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के समय नीतीश कुमार के विरोध में चिराग पासवान ने भी जबरदस्त मोर्चेबंदी की थी, लेकिन इस वक्त बिहार की राजनीति से चिराग गायब दिख रहे हैं।

नहीं दिख रहा लोजपा का प्रभाव- राज्य में इस वक्त लोजपा का प्रभाव एकदम नहीं दिख रहा है। लगता है चिराग पासवान ये फैसला नहीं कर पा रहे हैं की वो भाजपा के साथ अपने दोस्ती निभाएं या जदयू के साथ अपनी दुश्मनी। एक ओर जहाँ तेजस्वी यादव रोज नीतीश कुमार पर खुलकर हमले बोल रहे हैं तो वहीं चिराग पासवान बिहार की राजनीति में नजर तक नहीं आ रहे हैं। लोजपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां वन मैन आर्मी वाली पार्टियां होती हैं ,इनमें सबसे बड़े नेता का हमेशा एक्टिव रहना जरूरी होता है। लेकिन , चिराग के निष्क्रियता की वजह से लोजपा का भी प्रभाव नहीं दिख रहा है।

भाजपा से भी नहीं मिली मदद- विधानसभा चुनाव के समय चिराग ने खुद को मोदी जी का हनुमान कहा था, लेकिन जदयू के दबाव में भाजपा भी चिराग की मदद नहीं कर रही है। भाजपा ने पहले जदयू के दबाव में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा की सीट लोजपा को नहीं दी और अब जदयू के दबाव में ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोजपा का जो एक मंत्रिपद है वो भी उसको नहीं मिल रहा है। भाजपा ने लोजपा के कई नेताओं को भी अपनी पार्टी में भी शामिल करवा लिया है। गौरतलब है कि जनता दल यूनाइटेड अपने खराब प्रदर्शन के लिए पूरी तरह से चिराग पासवान को दोषी मानती है।

कई नेताओं ने छोड़ा लोजपा का साथ- बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से कई नेताओं ने लोक जनशक्ति पार्टी का साथ छोड़ा है। पहले जदयू ने लोजपा के करीब 200 नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया, तो बाद में भाजपा ने भी चिराग को झटका देते हुए लोजपा की एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह के साथ-साथ करीब 200 अन्य नेताओं को भी भाजपा में शामिल करवा लिया है।

चिराग के पास है अनुभव की कमी- चिराग पासवान को अभी राजनीति की इतनी समझ नहीं है और अचानक से रामविलास पासवान का निधन हो जाने से वह पार्टी को सही ढंग से चला नहीं पा रहे हैं। हालांकि 28 फरवरी को चिराग ने पटना में बैठक की थी और बिहार के मतदाताओं को 23 लाख वोट देने के लिए धन्यवाद दिया था। चिराग ने कई नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद लोजपा के संगठन में कुछ परिवर्तन भी किया है। लेकिन , इन वक्त जनता पे वो रामविलास पासवान वाला प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं।

जमीनी स्तर पे काम करने की जरूरत- चिराग पासवान को बिहार की राजनीति में अपना स्थान दर्ज कराने के लिए इस वक्त जनता से संबंध बनाने की जरूरत है। जिस तरह से रामविलास पासवान जमीन से जुड़े हुए नेता थे और जनता के बीच जाते थे ,उसी तरह से चिराग को भी बिहार में रहकर बिहार के लिए राजनीति करनी होगी। चिराग को अपने हमउम्र नेता तेजस्वी से सीखना होगा कि बिहार की राजनीति में रहना है तो जमीन से जुड़ा रहना जरूरी है। चिराग को अपनी पार्टी को भी टूट से बचाना होगा और उन्हें अपने दोस्तों और दुश्मनों में भी फर्क करना होगा।

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