कड़ी धूप में रिक्शा चलाकर बेटे को बना दिया IAS और घर ले आया IPS बहू – सलाम है ऐसे पिता को

डेस्क : आपने सुना होगा कि शिद्दत से मेहनत के बाद कामयाबी ज़रूर मिलती है। यह सच बात है क्योंकि किस्मत यह नहीं देखती कि इंसान कहां से और किस जगह मेहनत कर रहा है बल्कि किस्मत तो सिर्फ मेहनत देखती है और मेहनत करने के बाद उसे सफलता प्राप्त हो जाती है। मेहनत चाहे रिक्शा चलाने की दिशा में हो या फिर पढ़ लिखकर आईएएस आईपीएस बनने में हो। कुछ इस ही तरह का उदाहरण हमें देखने को मिला है काशी एक रिक्शा चालक के यहां। काशी का रिक्शा चालक दिन रात एक करके रिक्शा चलाया करता था और दिन रात यही सोचता था की वह बड़ा होकर अफसर बन जाए।

जब उसने यह काम करना शुरू किया तो उसने अपने आप से वादा किया कि वह अपने बच्चे से यह काम नहीं करवा पाएगा। इसलिए उसने पैसे जोड़े और उसकी पढ़ाई करवाई। बता दे कि रिक्शा चालक का नाम नारायण जयसवाल है जिसने अपने बेटे को आईएएस अफसर बना दिया और फिर उसके आईएस बेटे ने आईपीएस बहू घर में ला दी और अब दोनों मिलकर एक ही गांव में पोस्टेड है। रिक्शा चालक नारायण जयसवाल ने इतनी शिद्दत के साथ रिक्शा चलाई थी की उनके पास 35 रिक्शा हो गए थे। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। जो बेटा उनका आईएएस ऑफिसर है उसका नाम गोविंद है, गोविंद की मां का देहांत तब हो गया था जब वह मात्र 13 वर्ष का था। मां के देहांत की वजह ब्रेन हेमरेज है। उस वक्त नारायण जायसवाल ने अपने 20 रिक्शा बेच दिए थे। लेकिन, वह अपनी पत्नी का इलाज नहीं करवा पाए थे।

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एक समय पर नारायण जायसवाल अपने बेटे को रिक्शे पर बैठा कर खुद स्कूल छोड़ने जाते थे। तब स्कूल के बच्चे गोविंद को यह कहकर चिढ़ाते थे कि देखो रिक्शावाले का बेटा आ गया। गोविंद ने खूब मेहनत की और सेकंड हैंड किताबें खरीदकर पढाई की क्योंकि उनके पास नया बैग और नई किताबें खरीदने के पैसे नहीं थे और जो बचे कुचे पिताजी के रिक्शे थे वह भी बेटी की तीन शादियों में बेचने पड़ गए थे। पिताजी के पास मात्र एक रिक्शा रह गया था जिस पर गोविंद सुबह बैठकर स्कूल जाता था और पूरे दिन गोविंद के पिता नारायण जायसवाल रिक्शा चलाकर ही पैसा कमाते थे।

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नारायण जायसवाल के बेटे गोविंद ने इतनी मेहनत की थी कि उसको पहले प्रयास में ही 48 रैंक प्राप्त हो गई। एक बार का किस्सा है जब गोविंदा नागालैंड में पोस्टेड था तब गोविंद की बहन के पति जो कि वकील के मित्र हैं उनके बीच बात कर रहे थे। उस दौरान गोविंद को चंदना के बारे में पता चला चंदना 2011 की आईपीएस ऑफिसर है। गोविंद को चंदना पहली बार में पसंद आ गई और दोनों का रिश्ता आगे की ओर बढ़ गया। पहले जब गोविंद का रिश्ता चंदन से होने जा रहा था तो चंदना शादी करने को तैयार नहीं थी क्योंकि वह कह रही थी कि अभी तो मेरी ट्रेनिंग चल रही है लेकिन जब चंदना की नानी ने उनको कहा कि लड़का अच्छा है और इसने तो समाज में एक नई मिसाल कायम की है तब चंदना राजी हो गई और दोनों की शादी हो गई।

अब चंदना गोविंद की तारीफ करते नहीं थकती है। गोविंद अपने बचपन का एक किस्सा सुनाते हैं और कहते हैं कि जब वह 13 साल के थे तो वे अपने एक दोस्त के घर में गए थे। तब गोविन्द के दोस्त के घरवालों ने उनको घर से निकाल दिया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि वह एक रिक्शा चालक के बेटे थे। बचपन में उनकी बहनों ने दूसरों के घर बर्तन मांज कर गोविंद को पाल पोस कर बड़ा किया। ऐसे में जब इंटरव्यू का दिन आया तो उनकी बहने काफी घबरा गई थी, कि अगर गोविंद का सिलेक्शन नहीं हुआ तो क्या होगा क्योंकि गोविंद को दिल्ली भेजकर पढ़ाने के लिए जमीन भी बेचनी पड़ गई थी। जिसके चलते अब परिवार के हाथ में कुछ भी नहीं था लेकिन जब गोविंद का सिलेक्शन हो गया तो अब वह वाराणसी के एक बड़े और आलीशान बंगले में रहते हैं।

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