107 गोलियां खायी थी बिहार के इस विधायक ने , भीड़ को शांत कराने खुद लालू प्रसाद यादव को जाना पड़ा था !

डेस्क : बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर है। हर दल के नेता अपने-अपने हिसाब से वोट मांगने की कोशिश में जुटे हैं। चुनाव के इस दौर में बिहार के चौक-चौराहों पर पुराने नेताओं की भी बातें होने लगी है। खासकर उन नेताओं की जो जनप्रिय रहे। ऐसे में हम पूर्णिया विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे वाम नेता अजित सरकार के बारे में बात करेंगे।

बिहार विधानसभा (Bihar Assembly Elections 2020) को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। ऐसे में पुरानी बातें याद आना लाजमी है ।बात करते है पूर्णिया सदर सीट (Purnia vidhan sabha seat) पर 1977 के चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार कड़े हुए अजित सरकार (Ajit Sarkar) की।वे न सिर्फ कड़े हुए बल्कि 12 हजार से अधिक वोट लाकर वे तीसरे नंबर पर भी रहे थे।

इसके बाद वे 1980 में हुए चुनाव में वाम दल के टिकट पर अजित सरकार चुनाव जीते। वह लगातार चार बार विधायक बने। अजित सरकार गरीब किसानों के लोकप्रिय नेता माने जाते थे। हर चुनाव में सीमांचल के इलाके में इनकी चर्चा होती है।साल 1980 में पूर्णिया विधानसभा सीट से माकपा ने अपने युवा नेता अजित सरकार को उम्मीदवार बनाया था। अजित सरकार शहर के चर्चित होम्योपैथ डॉक्टर के बेटे थे। इस नेता की 107 गोलियां मारकर हत्या की गई थी। अजित सरकार का जन्म 1947 में बिहार के पूर्णिया में हुआ था। पूर्णिया और आसपास के इलाके को सीमांचल कहते हैं। क्योंकि यह इलाका नेपाल और पश्चिम बंगाल का सीमावर्ती है। सीमांचल के तहत सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा और कटिहार आते हैं। सीमांचल में कोसी नदी बहती है। इसके बाढ़ के प्रकोप के चलते यहां के लोग गुरबत की जिंदगी जीते हैं।

इसी जमीन पर पले बढ़े अजित सरकार के मन में बचपन से ही सामंतवाद के खिलाफ नफरत की भावना पनप गई थी। बड़े होकर अजित सरकार जुझारू मार्क्सवादी बन गए। उन्होंने जमींदारों की जमीन कब्जाकर उसे गरीबों में बांटना शुरू कर दिया। गरीब लोग अजित सरकार को अजित दा कहकर बुलाते थे।

अजित सरकार हत्याकांड में पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल कुमार यादव को आरोपी बनाया गया था। इस मामले में पप्पू यादव को आठ साल जेल में भी बितानी पड़ी, लेकिन आखिरकार वे पटना हाईकोर्ट से बरी हो चुके हैं। इस हत्याकांड के बाद अजित सरकार के बेटे अमित सरकार जान का खतरा बताते हुए आस्ट्रिया में रहने लगे।

अजित सरकार का दफ्तर पूर्णिया के झंडा चौक के पास था। चुनाव लड़ने की अजित सरकार की अनोखी शैली थी। वह चुनाव प्रचार के नाम पर एक गमछा बिछाकर बाजार में बैठ जाते और आने जाने वालों को कहते कि वे उनके गमछे में एक रुपये का सिक्का डाल दें। एक रुपये से ज्यादा डालने की किसी को भी मनाही थी। देखते ही देखते अजित सरकार के गमछे में एक रुपये के सिक्कों का ढेर लग जाता।

अजित सरकार उन सिक्कों को लेकर घर लौटते और उनकी गिनती करते। इससे अनुमान लगा लेते की कमसे कम उन्हें इतने वोट तो मिलेंगे ही। अजित सरकार लगातार चार बार पूर्णिया से विधायक बने। उस दौर में बिहार की राजनीति में बंदूक और संदूक का दौर था। बंदूक यानी बाहुबल और संदूक यानी धनबल। यानी जिस प्रत्याशी के पास गुंडे और पैसे होते ही नेता सांसद या विधायक बनता था। बिहार की ऐसी राजनीति में अजित सरकार का उदय एक अनोखी घटना थी। अजित सरकार चार-चार बार विधायक बनने के बाद भी अपने लिए कोई निजी संपत्ति अर्जित नहीं की थी। वे पूर्णिया के दुर्गाबाड़ी मोहल्ले में एक किराए के मकान में रहते थे।

उस दौर में मकान का किराया छह सौ रुपये थे। घर का खर्च अजित सरकार की पत्नी माधवी चलाती थीं। माधवी एक सरकारी स्कूल टीचर थीं। अजित सरकार के उदय से पूरे पूर्णिया जिले के पूंजीवादी और सामंती लोग परेशान थे। 14 जून 1998 की शाम को पूर्णिया शहर के अंदर घूम रहे थे। तभी अपराधियों ने उन्हें घेर लिया। अपराधियों ने उनपर लगातार फायरिंग शुरू कर दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि अजित सरकार को 107 गोलियां मारी गई थी। इस निर्मम हत्या से साफ संकेत मिल रहे थे कि अजित सरकार के प्रति अपराधियों के मन में कितना गुस्सा और नफरत थी।

अजित सरकार की हत्या के बाद पूर्णिया में हालात बेहद खराब हो गए। अजित सरकार के समर्थकों ने पूरे पूर्णिया शहर में विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए। हालात खराब होते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हेलीकॉप्टर से पूर्णिया पहुंचे। भरी भीड़ में लालू प्रसाद यादव पहुंचे और लोगों ने शांति बनाए रखने की अपील की। लालू के साथ अजित सरकार के बेटे ने अमित सरकार ने भी लोगों ने शांति बनाए रखने की अपील की। भीड़ के शांत होने पर आखिरकार अजित सरकार के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। इस हत्याकांड में आजतक फैसला नहीं आ पाया है।

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