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बिहारी रिपोर्टर

चुनावी विश्लेषण: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 कई मायने में खास-कोरोना काल, नेतृत्व के उद्भव और पराभव का साक्षी…

डेस्क : इस बार होने जा रहा बिहार विधानसभा चुनाव 2020 कई मायने में खास होगा।इस बार के बिहार चुनाव में राज्य की सियासत नए नेतृत्व के उद्भव की साक्षी बनेगी। साथ ही इन उभरते नायकों की अग्निपरीक्षा भी होगी। इस चुनाव में तीन युवा नेता अपनी- अपनी पार्टियों की कमान संभाल रहे हैं। 30 वर्षीय तेजस्वी महागठबंधन तो 37 वर्षीय चिराग लोजपा के चेहरा हैं। इन दोनों को राजनीति विरासत में मिली है।वही, वीआईपी के अध्यक्ष 39 वर्षीय मुकेश सहनी मुंबई में कारोबारी रहे। इन्होंने अपनी पार्टी बनाई और पहली बार बिहार विधान सभा के चुनाव में उतरे हैं। सहनी ने एनडीए में भाजपा कोटे से 11 सीटें हासिल कर बड़ी कामयाबी भी दर्ज कर ली है। लोकसभा का चुनाव इन्होंने महागठबंधन के बैनर तले लड़ा था।ऐसे में भ्रम की बिसात कितनी कामयाब होगी यह कहना मुश्किल है। बहरहाल, इस चुनाव में इन तीन उभरते नायकों की अग्निपरीक्षा भी होगी।

इन तीनों नए नायकों की सामाजिक पृष्ठभूमि भी मंडलवादी राजनीतिक धारा से जुड़ती है। तेजस्वी पिछड़ा तो चिराग दलित और मुकेश अतिपिछड़ा श्रेणी के हैं। इन तीनों में एक समानता भी है कि सियासत का सफर न तो इन्होंने गांव से शुरू किया और न आर्थिक तंगी में रहते हुए। वहीं, चार दशकों से राज्य और देश की सियासत में छाए रहे लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की कमी खलेगी। लालू प्रसाद भले ही नेपथ्य से अपनी पार्टी की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका चुनाव में नहीं होगी, जबकि पासवान अस्पताल में भर्ती हैं। सुदूर गांव और कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से निकलकर सत्ता के शिखर तक की यात्रा तय कर दोनों ने मिसाल भी कायम की। हालांकि लालू प्रसाद को धन लोलुपता ने ऐसे जकड़ा कि सलाखों के पीछे पहुंच गए।

रामविलास पासवान और लालू प्रसाद बहुत साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए और सियासत की बुलंदियों तक पहुंचे। वैचारिक प्रतिबद्धता और बदलाव की सामाजिक चाहत ने इनकी राह आसान की। लेकिन इनके उत्तराधिकारी बने तेजस्वी और चिराग की राह साधन संपन्नता और मजबूत सियासी संरचना के बावजूद आसान नहीं है। तेजस्वी ने महागठबंधन के सीएम पद का उम्मीदवार बनने की बड़ी सफलता दर्ज कर ली है, लेकिन उन्हें सभी सहयोगी दलों को विश्वास में रखकर चलने की क्षमता साबित करनी होगी, तभी उनकी अपनी अलग छवि कायम हो सकेगी। लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी को महागठबंधन में बिहार का नेता बनने का सौभाग्य मिला था, लेकिन उस समय वह सभी दलों को साथ रखकर एकजुटता का प्रदर्शन करने में हर मोर्चे पर चूक गए थे।

वही, चिराग को भी अपने पिता की मजबूत सियासी धरातल हाथ लगी है। उन्होंने अकेले चुनाव में जाने की हिम्मत दिखाई है। यह साहस तो रामविलास पासवान भी नहीं दिखा पाए। लेकिन उन्हें यह साबित करना होगा कि जो फैसला लिया वह कितना सही था। भले ही लोजपा बिहार चुनाव में एनडीए का हिस्सा नहीं है, लेकिन चिराग भाजपा का परोक्ष लाभ लेने की रणनीति पर चल रहे हैं। वह न केवल प्रचार में पीएम नरेन्द्र मोदी के चेहरे के इस्तेमाल से बल्कि अखाड़े में भी भाजपाई चेहरे उतार कर यह संदेश देने में लगे हैं कि भाजपा से उनकी निकटता है। वह बार- बार बयान भी दे रहे हैं कि चुनाव बाद भाजपा और लोजपा की सरकार बनेगी, लेकिन भाजपा ने दो टूक कह दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं और जो उन्हें नेता नहीं मानते वह एनडीए का हिस्सा नहीं हैं।

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