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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : नई लीक पर चले तेजस्‍वी , विधानसभा चुनाव से पहले राजद आया नए कलेवर में

डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव सर पर आ चुका है ऐसे में राजद और तेजस्वी दोनों की एक ही मंशा है । एक नया फलसफा एक नई कहानी लिखने की । तेजस्वी यादव को अच्छे से मालूम हो गया है कि राजनीति में सफलता बनी-बनाई लीक पर चलने से नहीं मिलती है। इसलिए अब वो अपनी पार्टी में सबकुछ बदल देना चाहते हैं। लालू प्रसाद के बनाए उस ट्रैक को भी, जिसके सहारे वह राजनीति में इतनी दूर तक पहुंच सके हैं। राजद में इस नई बयार की चर्चा इसलिए मौजूं है कि पार्टी के पोस्टरों में अब लालू प्रसाद नहीं दिखते हैं। राबड़ी देवी भी नहीं। सिर्फ तेजस्वी को ही राजद की नई सोच का प्रतिबिंब बताया जाता है।

यह जानते हुई भी कि बिहार में लालू प्रसाद के बिना फिलहाल राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, तेजस्वी ने अपनी 23 साल पुरानी पार्टी में बदलाव की पहल कर दी है। बारी-बारी से सब कुछ बदला जा रहा है।

तेजस्वी ने सबसे पहले आम लोगों के बीच बनाई गई उस धारणा में बदलाव की पहल की, जिसके चलते राजद के जनाधार में लगभग पूर्ण विराम आ गया था। पार्टी को मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण के ठप्पे से उबारने का प्रयास किया गया। इशारा कर दिया गया कि राजद किसी खास जाति-समुदाय की पार्टी नहीं, बल्कि ए-टू-जेड की पार्टी है। यहां तक कि उन्होंने राजद विरोधी मतदाताओं पर डोरे डालते हुए लालू-राबड़ी के कार्यकाल की गलतियों के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने से भी संकोच नहीं किया। मंचों से माफी मांगी। कई बार मांगी। राजद के रणनीतिकारों ने इस पहल की व्याख्या उभरते उदारवादी नेता के रूप में पेश की, किंतु जदयू-भाजपा ने यह भी बताने को कहा कि तेजस्वी को लालू के किस गुनाह के लिए माफी चाहिए।

पार्टी में बदलाव की प्रक्रिया में अड़चन महसूस की तो तेजस्वी ने लालू-राबड़ी के जमाने के लोगों से अलग अपनी टीम बना ली। इससे कुछ पुराने दिग्गज असहज महसूस करने लगे तो खुद ब खुद दरकिनार भी होते गए। जिन्होंने बदलाव की हवा पहचानी और खुद को समर्पित कर दिया, वे आज भी तेजस्वी की टीम के अहम किरदार बने हुए हैं। जिन्होंने नहीं समझी या जानबूझकर समझने की कोशिश नहीं की, वे अभी हाशिये पर हैं या पार्टी से बाहर हैं।

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