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प्राचीन देवड़ी मंदिर : जहाँ आम क्या खास क्या कप्तान कूल धोनी भी आते है हाज़िरी लगाने

भारत मन्दिरों का देश कहलाता है, यहां हर दो कदम पर मंदिर को देखा जा सकता हैं। हर मंदिर की अपनी कहानी, प्राथमिकता और इतिहास है, जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। रंक हो या राजा हर कोई भगवान के शरण में अपने शीश नवाता है, और उनका आशीर्वाद लेता है।

कहां स्थित है मां दिउड़ी का मंदिर?

मां दिउड़ी का मंदिर (Deodari Temple) रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर रांची-टाटा हाइवे (Ranchi Tata Highway) पर तमाड़ (Tamar) में स्थित है, जो आज देश विदेशों में प्रसिद्ध है। हालंकि यह मंदिर पहले खासा प्रसिद्ध नहीं था, लेकिन जब बार बार कैप्टन धोनी (Captain Dhoni) बार बार माता दिउड़ी में अपनी हाजरी लगाने पहुंचे तो तह मंदिर स्थानीय लोगों के बीच ही नहीं बल्कि विश्व विख्यात हो गया।

मां दिउड़ी के मंदिर में देवी काली की मूर्ति करीबन करीब साढ़े तीन फुट ऊंची देवी 16 भुजाओं वाली हैं। सोलहभुजी देवी के नाम से प्रख्यात है। इस मंदिर में स्थापित देवी मां की मूर्ति ओडिसा की मूर्ति शैली जैसी है। इस मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि, इस मंदिर की स्थापना पूर्व मध्यकाल में तकरीबन 1300 ई. में सिं हभूम के मुंडा राजा केरा ने युद्ध में परास्त होकर लौटते समय की थी। कहा जाता है कि, देवी ने सपने में आकर राजा केरा को मंदिर स्थापना करने का आदेश दिया था, मंदिर की स्थापना होते ही राजा को उनका राज्य दोबारा प्राप्त हो गया था।

प्राचीन देवड़ी मंदिर जो रांची टाटा रोड पर तमाड़ से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों के दंतकथा के अनुसार केरा ( सिंहभूम ) का एक मुंडा राजा , जब अपने दुश्मन से पराजित हो गया, तब उसने वापस लौटते समय देवड़ी में जाकर शरण ली थी तथा यहाँ माँ दशभुजी का आह्वान कर उसकी मूर्ति स्थापना की थी। आह्वान के बाद उक्त मुंडा राजा ने अपने दुश्मन को पराजित कर अपना राज्य वापस ले लिया था। इस मंदिर को बनाने में पत्थरों को काट कर एक दूसरे के ऊपर रखा गया है बिना जोड़े हुए। ऐसी भी मान्यता है की सम्राट अशोक इस देवी के दर्शन के लिए आते थे। काला पहाड़ ने इस मंदिर को ध्वस्त करने की चेष्टा की थी. किन्तु उसे सफलता नहीं मिली थी। १८३१ – १८३२ के कोल आंदोलन के समय उद्दंड अंग्रेज अधिकारीयों ने इस मंदिर पर गोलियां चलाई थीं, जिसके चिन्ह स्पष्ट हैं।

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आदिवासी और हिन्दू संस्कृति का संगम इस मंदिर को आदिवासी और हिन्दू संस्कृति का संगम कहा जाता है, क्योंकि इस मंदिर के पुजारी पाहन होते हैं, जो हफ्ते में छ: दिन माता की पूजा अर्चना करते हैं, सिर्फ मंगलवार को ब्राहमण देवी मां की पूजा अर्चा करते हैं।

कोई नहीं बदल सका मंदिर की सरंचना

नवरात्री में उमड़ता है भक्तों का सैलाब इस मंदिर में हिंदुयों के प्रमुख त्यौहार मनाये जाते हैं, नवरात्री के ख़ास पर्व पर इस मंदिर में श्रधालुयों का हुजूम उमड़ता है, बताया जाता है कि, नवरात्री के मौके पर इस मंदिर में करीबन 20-30 हजार भक्त माता का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

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