बिहार विधानसभा चुनाव 2020: RJD की नजर एक बार फिर फतुहा फ़तेह करने पर..

डेस्क : बिहार विधानसभा चुनावों की तिथि घोषित हो चुकी है । ऐसे में हर कोई अपनी रोटी सेकने में लग गया है। चाहे जैसे भी हो हर नेता पार्टी सब अपनी गोटी सेट करने में लगे हुए है। ऐसा ही एक सीट है जिस पर सबकी नज़र बरबस ही जाती है।यहाँ बात हो रही है, राजधानी से लगते हुए इंडस्ट्रियल एरिया के तौर पर अपनी पहचान बना चुके फतुहा की। यहाँ का समीकरण जातिगत होने के साथ-साथ ही विकास के मुद्दे का भी रहा है।वैसे तो अभी यहां पर आरजेडी (RJD) का कब्जा है, इसलिए जेडीयू के लिए राह काफी मुश्किल हो सकती है यहाँ पर।

फतुहा विधानसभा सीट 1951 में ही बन गई थी। इसके बाद कांग्रेस ने इस पर कब्जा जमाया लेकिन जल्द ही जनसंघ और लोकदल ने इस पर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश की। हांलाकि पिछले दो दशक की बात की जाए तो सीट आरजेडी और जेडीयू के पाले में ही रही है।आरजेडी के रामानंद यादव यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं और पूरी कोशिश में हैं कि इन चुनावों में जीत दर्ज कर वे तीसरी बार विधायक बनें। पिछले चुनावों में एनडीए की ओर से लोजपा ने यहां से उम्मीदवार उतारा था। हालांकि उसे हार का सामना करना पड़ा था।हालांकि कभी ये सीट कांग्रेस के खाते में भी रही है लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस पर जेडीयू और आरजेडी ही अपना परचम लहराते आए हैं।

2015 के चुनावों के दौरान आरजेडी और जेडीयू साथ थीं। ये सीट आरजेडी के खाते में आई थी और रामानंद यहां से उम्मीदवार थे। वहीं एनडीए की तरफ से लोजपा ने अपने उम्मीदवार सत्येंद्र कुमार सिंह को मैदान में उतारा था।लेकिन परिणाम सीधे तौर पर रामानंद के पक्ष में गए।यादव ने यहां पर लगभग 30 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी।फतुहा वैसे तो इंडस्ट्रियल इलाका है लेकिन यहां पर जातिगत फैक्टर भी बड़ा रोल निभाता है। यहां पर कुर्मी जाति के वोटरों की संख्या अधिक है।

यहां पर करीब दो लाख वोटर हैं और उनमें कुर्मी के साथ ही यादव भी हैं। जिसका सीधा फायदा हमेशा ही आरजेडी उठाती आई है। हालांकि समय समय पर उसके वोट बैंक में सेंध लगने की बातें भी सामने आई हैं लेकिन ऐसा कभी चुनाव परिणामों में देखने को नहीं मिला। इस बार भी आरजेडी का पूरा ध्यान अपने यादव वोट बैंक को संभालने के साथ ही कुर्मी समाज के लोगों को अपने साथ करना होगा।

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